Thursday, February 25, 2010














कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज कुल्लू मनाली हिमाचल में रहते हैं। लेकिन कोई स्थाई घर या आश्रम नहीं है महायोगी साधना और हिमालय विचरण में खोये रहते हैं। हिमालय के इस बिरात योगी के इतने रहस्य हैं की यहाँ बताना कठिन है। लेकिन ६४ कला संपन्न महायोगी चिंता मुक्त हो लीन हैं।

Sunday, February 14, 2010

कुल्लू के हिमालय पर साधना












महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज कौलान्तक पीठाधीश्वर है..........उनके बारे में जानकारी देने के लिए अलग अलग ब्लोग्स साइट्स आदि का सञ्चालन हम शिष्य मंडल करते हैं...हमारी कोशिश है की हम कुछ वास्तविक साधको को जोड़ कर दिव्य कार्य कर सकें...आपकी राय बहुत महत्वपूर्ण है....कृपया मार्गदर्शन करना न भूले...

-कौलान्तक पीठ

हिमालय,कुल्लू-मनाली

Friday, January 8, 2010

कौलान्तक पीठ -2





हिमालय की कठोर हठ सधानाओं से हो कर गुजरे है व लुप्तप्राय: हो चुकी टन्करी लिपि व भूतलिपि आदि का ज्ञान रखते हैं । अध्यात्म की सभी विधाओं में निपुण हैं व बाल्यावस्था से साधनारत हैं ..... हिमालय के अनेक क्षेत्रों में साधनों एवं तप क्रियाओं को संपन्न कर चुके हैं। ऐसे में आपका इस पीठ से जुड़ना मानव जीवन का गौरव है। आपके द्वारा यह पीठ पुनर्प्रतिष्ठित हो पायेगी तथा आदिकाल की तरह ही अनेक राष्ट्रों व द्वीपों के साधकों को दिव्य ज्ञान प्रदान कर पाएगी तथा वास्तविक साधनात्मक जीवन का पुनर्स्थापन हो पायेगा। कौलान्तक पीठ से जुड़ कर आपने अपना अमूल्य सहयोग इस पीठ को प्रदान किया हैं। अतः पीट पूरण निष्ठां से आपको आध्यात्मिक व भौतिक उन्नति के मध्यमो से अवगत करवाएगा। कौलान्तक पीठ का कार्य किसी प्रदेश अथवा देश का कार्य न हो कर एक वैश्विक कार्य है। अतः आप गणमान्य सदस्यों की राय अपेक्षित है। कौलान्तक पीठ का कार्य पूरी तरह पारदर्शी व धर्मनिष्ट है। कौलान्तक पीठ के इस वैश्विक महा यज्ञ में आपका सहयोग एह आहुति की तरह अमूल्य व गौरवमयी रहेगा। अतः सभी दिव्य पथ के साधकों से अनुरोध है की वे कौलान्तक पीठ की स्थापना में अपना सहयोग दें ..........और हिमालय के दिव्य ज्ञान से स्वयं जुड़ें तथा विश्व को जोड़ें।
कौलान्तक पीठ
हिमालय,कुल्लू-मनाली
हिमाचल प्रदेश, भारत
संपर्क : ०९४१८१ ३६१५६


महाकालाय विकर्तना मायाधराय नमो नमः


हिमालय की दिव्य भूमि में कुल्लूत नाम का एक प्राचीन देश.... जहाँ मां भगवती पाराम्बा का निवास माना गया तथा शिव की तंत्रमयी तपोभूमि मानी जाती है... में एक स्थान ऐसा भी था , जिसे कौलान्तक पीठ कहा जाता था इस पीठ के पर्यायवाची नाम क्रमश: कुलांतर पीठ, कुलान्तक पीठ, कोलांतर पीठ, कौलांतर पीठ हैं इस पीठ की स्थापना स्वयं शिव द्वारा की गयी मणि जाती है क्योंकि माँ सती से सम्बन्धित होने के कारण भगवान शिव ने स्वयं हिमालय के एक भाग में इस पीठ की स्थापना की थी इस पीठ के प्रथम पीठाधीश भगवान लोमेश ऋषि को माना जाता है उसके बाद क्रमश: अनेक दिव्य ऋषियों ने इस पीठ को संभाला कलयुग में वर्ष २००२ में हिमालय की दिव्य ऋषि परम्परा के द्योतक प्रातः स्मरणीय पूज्य पाद श्री सिद्धसिद्धांत नाथ जी महाराज ने इस पीठ पर श्रद्धेय महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज को पीठाधीश के रूप में प्रतिष्ठित किया गया पहली बार महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने हिमालय की प्राचीन पीठ भारत की सबसे प्राचीन पीठ कौलान्तक पीठ को पुन: विश्व भर में प्रसारित प्रतिष्ठित करने का दायित्व स्वीकार किया। कौलान्तिक पीठ तप , साधनाओं और अध्यात्म ज्ञान का भंडार है यह एक मात्र ऐसा पीठ है जिसके साधकों को ६४ कला संपन्न होने का गौरव प्राप्त है सांकेतिक रूप से शास्त्रों में इसी पीठ को ज्ञान गंज, सिद्धाश्रम महा हिमालय कहा गया है ऐतिहासिक दृष्टि से हिमाचल के कुल्लू शहर के मध्य से बहती विपाशा नदी जिसे वर्तमान में व्यास नदी भी कहा जाता है के साथ लगता पूर्वी उत्तरी क्षेत्र तिब्बत के अंतिम पठार तक कौलान्तक पीठ कहलाता है नदी के दक्षिणीपश्चिमी भाग को जालंधर पीठ माना गया है जिसकी स्थापना काक भुशुण्डी जी महाराज ने की थी रेशमी मार्ग पर आने वाले दुसरे देश के आक्रमणकारियों ने दोनों पीठों को नष्ट कर दिया था किन्तु कौलान्तक पीठ को उस समय के पीठाधीश ज्ञानेंद्र नाथ जी महाराज ने पुनर्प्रतिष्ठित किया तथा यह भी कथा आती है की उस समय नव नाथ और चौरासी सिद्ध हिमालय भ्रमण करते हुए इस पीठ पर पहुंचे तथा उन्होंने इस पीठ के जीर्णोद्धार में सहायता की। इसी कारण इस पीठ पर नाथ सम्प्रदाय और सिद्ध संप्रदाय का भी अधिकार हो गया जो मत्स्येन्द्र नाथ जी महाराज गुरु गोरख नाथ जी महाराज द्वारा स्थापित है कौलान्तक पीठ में साधक अलग- अलग देशों, अलग - अलग द्वीपों से ज्ञान विद्या प्राप्त करने आते थे इस पीठ का पीठाधीश्वर बनने हेतु योग, ज्योतिष, तंत्र, वास्तु, कर्म कांड , आयुर्वेद सहित अनेक विषयों का ज्ञान होना अनिवार्य है हिमालय के उच्चतम क्षेत्रों में हट साधनाओं को संपन्न करना होता है तथा गुरु शिष्य परम्परा के अनुकूल ही यह पीठ प्राप्त होती है किन्तु खेद का विषय यह रहा की लगभग २००० सालों से कौलान्तक पीठ का परम्परा हिमालय के क्षेत्रों में आंशिक रूप से जीवित रही लेकिन उसी कल से जालंधर पीठ सहित अन्य चार दिव्य पीठें लुप्त हो गयी संभवतः इसी आशय को जगत गुरु भगवान शंकराचार्य जी ने समझा हिमालय की इन लुप्त पीठों के बराबर की चार पीठों की स्थापना की। किन्तु सकल जगत के लिए यह प्रसन्नता का विषय है के महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने सबसे प्राचीन कौलान्तक पीठ की पुनर्स्थापना का बीड़ा उठाया है महायोगी स्वयं इस परम्परा से जुड़े हैं नाथ परम्परा से भी दीक्षित हैं।